रोज होते धमाको से मेरे मन में बार बार ख्याल आ रहा है कि आख़िर चूक कहा हो रही है । क्या हमारा सुरक्षा तंत्र इतना लचर है की आतंकवादी जहाँ मन चाहे वहाँ विस्फोट कर रहे है । और सभी मूक दर्शक बने बैठे है । और सबसे चौकाने वाला तथ्य तो यह है की विस्फोटो को अंजाम देने वाले लोग पडोशी देश के किराये के टट्टू नही बल्कि हमारे ही देश के निवासी है ।
हर बार उंगली मुसलमानों की और उठाई जा रही है । अब तो आलम यह है किहर मुसलमान को शक कि निगाह से देखा जाने लगा है, मुसलमान सुनते ही कट्टर , निर्दयी देशद्रोही जैसे शब्द दिमाग मे कौधने लगते है । इस कौम कि छबि ऐसी बन गई है कि हम मानाने लगे है कि इस कौम के लोग किसी के सगे नही हो सकते । सही भी है जब कोई अपने देश के खिलाफ काम कर सकता है तो वो क्या नही कर सकता ।
पर फ़िर भी बार बार मन मई ख्याल आता है कि क्या कुछ मुठ्ठी भर लोगों कि वजह से सारी कौम के लोगोंको दोषी ठहराना सही है, हर मुसलमान को शक कि निगाह से देखना सही है । वो कौम जिसने न जाने कितने कलाकार , राज नेता , अभिनेता इस देश को दिए है जिन्होंने इस देश कि ख्याति को चार चाँद लगाये है । और अगर मैं इस्लाम के बारे मैं थोड़ा बहुत भी जानता हूँ तो इस्लाम किसी को देशद्रोह ,हिंसा नही सिखाता । तो चूक कहाँ हो रही है , क्यों हमारे देश के लोग ही विद्रोह पर उतारू है । कुछ लोग इसका कारण विभाजन के बाद मुसलमान राष्ट्र पकिस्तान के लिए प्रेम को कह सकते है, तो उन लोगो को मैं बता दूँ कि जो मुसलमान विभाजन के बाद भारत में रुकने का कारण इस देश से प्रेम था , यहाँ कि मिटटी से उन्हें लगाव था । तो अब समय आ गया है कि हम सोचे कि आख़िर ऐसा क्या हुआ कि अब वो इस राष्ट्र के दुश्मन बने बैठे है । जन्म भूमि से ज्यादा पकिस्तान को सगा मानने लगे । सच तो यह है कि आजादी के बाद हमने अपने राष्ट्र को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित तो कर दिया पर हमारे देश के कर्ताधर्ताओं ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए हमेशा उन्हें दबा के रखने कि कोशिश की , राष्ट्र के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया । कभी उन्हें मुख्य धारा मैं आने का मौका नही दिया ।( मैं स्पष्ट कर दू कि मैं एक हिंदू हूँ )। हमारे राजनीतिज्ञों ने मुसलमानों को सिर्फ़ वोट बैंक कि तरह देखा। अगर ऐसा सलूक किसी देश मैं किसी भी धर्म विशेष के लोगो के साथ होगा तो उनका विद्रोही बन जाना स्वाभाविक ही है ।
हम ये भूल गए कि २० करोड़ लोगो को दबा कर कब तक रखा जा सकता है । जब तक मुसलमानों कि आर्थिक , सामाजिक हालत सुधरने के लिए ठोस कदम नही उठाये जाते तब तक अपने ही देश वाशियों को हम देश के विरुद्धकाम करने से नही रोक सकते । अब ये समझने का वक्त आ गया है कि अगर हम इसी तरह मुसलमानों को दबानेकि कोशिश करते रहे तो हमारा देश एक और विभाजन कि कगार पर होगा और इस बार इसका कारण सिर्फ़ हम होंगे
Monday, September 29, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)